क्या पार्टी अपने बलबूते पर चुनाव जीतती है या फिर पार्टी के किसी बड़े नेता की छवि को दिखाकर चुनाव जीता जाता है यह बात उतनी ही गलत है जितना अपने आप को परिपक्व बताना क्योकि बना कार्यकर्त्ता के कोई भी चुनाव नहीं जीता जासकता उन्ही कार्यकर्ताओ की भावनाओ से खेलना सभी पार्टी की आदत सी बनगए है पहले तो पार्टी उन्हें चुनाव लड़ने के लिये तेयार करती है और फिर यदि उस सीट पर किसी बड़े नेता जी के पुत्र व् पुत्री या किसी रिश्तेदार का दिल आ जाये तो क्या कहना ? क्योकि पार्टियों के अन्दर कार्यकर्ताओ की जरा भी कद्र नहीं है ये तो पार्टी की निति ही है की जब मन में आया तो किसी भी कार्यकर्त्ता को कुछ समय के लिए खुश कर दिया और फिर अपना कम निकालकर उसके अरमानो के तोड़ दिया यह कहा का इंसाफ है ? जिस तरह हल ही में देश की सबसे बड़ी पार्टी ने कहा था कि उनकी पार्टी में सबसे पहले कार्यकर्ताओ को आगामी चुनाव में टिकिट देगी लेकिन ये सारी बाते टिकिट के एलान के पहिले ही धराशाही हो गई अर्थात जिन कार्यकर्ताओ को टिकिट मिलने कि उमीद थी उनकी उमीदो पर भी पानी फिर गया क्योकि उनकी सीट पर बड़े बड़े नेताओ के बेटे व् बेटी उपर से ही चुनाव मदन में उतर्दी जाती है एसा ही हर पार्टी में हो रहा है ये सोचना भुत जरुरी है कि कार्यकर्ताओ के साथ जो हो रहा है वह सही है या गलत ?
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- मै एक छोटे परिवार से हूं और एक सफल पत्रकार बनकर लोगों के कष्टों को सबके सामने लाना है....
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जब मैं छोटा था,शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी...मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता,क्या क्या नहीं था वहां,छत के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है....शायद अब दुनिया सिमट रही है......जब मैं छोटा था,शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी....मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था,वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल,वो हर शाम थक के चूर हो जाना,अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है..........शायद वक्त सिमट रहा है........जब मैं छोटा था,शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना,वो दोस्तों के घर का खाना, वो लड़किया, वो साथ रोना,अब भी मेरे कई दोस्त हैं, पर दोस्ती जाने कहाँ है,जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाई" करते हैं,और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं......
शीशे का दी ,आये थे लेकर पत्थरों के शहर मैं गैरों से बचाते रहे ,टूटा अपनों की ठोकर मैं ...............मुद्दतों से प्याशे थे क्या बताये अब अपना हाल फर्क न कर सके यारों हम "आव और जहर" मैं ..............उसने साहिल पर ही डुबोया मेरा आके तो सफीना जिसके हवाले खुद ही किया था हमने तूफां की लहर मैं गम नहीं रुसवाई का हमको इस भरी महफ़िल मैं अब तो उसने ही गिराया नजर से जिसको बसाया हमने नजर मैं .........उम्र भर तुम याद हमको अब तो आया करोगे जरूर ताड्पेगे हम जख्मों से जब जो दिए तुमने जिगर
मै कैसे डालू वोट ये सोचना है बड़ा मजेदार!
मै यहाँ हू और मेरा दिल (वोट) वहां (झाँसी) है! चिठ्ठी आई है आई है चिठ्ठी आई! बड़े दिनों के बाद एक चिठ्ठी घर से आई है! घर वालो ने पूछा हेगा कैसे डालोगे तुम वोट!क्या आओगे तुम घर वापस यदि नहीं, आओगे तो क्या करो गए मुझे तो कुछ समझ न आया है! सुचता हू क्या करुगा ! केसे दूगा वोट अजी में, उन्होंने पूछा कोई तरकीब है क्या ! क्या बताऊ कुछ भी नहीं! जाने क्या होगा उस वोट का, किसकी तक़दीर का है वो, क्या उसकी नसीब मे वो है! ये बात तो न सूची किसी ने! हर एक युवा घर से है दूर, इस बारे में कोई खोज नहीं है और कोई तकनीक भी नहीं! मैएतो चक्कर में फस गया, कैसे निकुलो पता है नहीं यार और कैसे वोट मै डालो क्यों की मेरा वोट बहुत कीमती है किसे प्रत्याशी ने अभी तक नहीं सुचा है किसे ने कोई तरकीब नहीं निकली और नहीं कोई ओंलियन वोटिंग की विवसथा है!
किसी ने सच ही कहा है कि एक वोट से ही किसी कि तक़दीर बिगड़ती है!
हम जेसा युवाओ के लिए कोई तरकीब होनी चाहिए जिसे किसी बढ़िया प्रत्याशी तक़दीर न बिगड़ पाए इस के लिया सरकार को कोई मुहीम चलानी चाहिय!
जय हो युवा पीढी की
तेरी दोस्ती को पलकों पर सजायेंगे हमजब तक जिन्दगी है तब तक हर रस्म निभाएंगेआपको मनाने के लिए हम भगवान् के पास जायेंगेजब तक दुआ पूरी न होगी तब तक वापस नहीं आयेंगेहर आरजू हमेशा अधूरी नहीं होती हैदोस्ती मै कभी दुरी नहीं होती हैजिनकी जिन्दगी मै हो आप जैसा दोस्तउनको किसी की दोस्ती की जरुरत नहीं पड़ती हैकिसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगाएक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगाकोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगावो किसी और दुनिया का किनारा होगाकाम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल कोमेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगाकिसी के होने पर मेरी साँसे चलेगींकोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगादेखो ये अचानक ऊजाला हो चला,दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगाऔर यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगाकौन रो रहा है रात के सन्नाटे मेशायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा
तलाश है,हर चहरे मे कुछ तोह एह्साह है,आपसे दोस्ती हम यूं ही नही कर बैठे,क्या करे हमारी पसंद ही कुछ "ख़ास" है. .चिरागों से अगर अँधेरा दूर होता,तोह चाँद की चाहत किसे होती.कट सकती अगर अकेले जिन्दगी,तो दोस्ती नाम की चीज़ ही न होती.कभी किसी से जीकर ऐ जुदाई मत करना,इस दोस्त से कभी रुसवाई मत करना,जब दिल उब जाए हमसे तोह बता देना,न बताकर बेवफाई मत करना.दोस्ती सची हो तो वक्त रुक जता हैअस्मा लाख ऊँचा हो मगर झुक जता हैदोस्ती मे दुनिया लाख बने रुकावट,अगर दोस्त सचा हो तो खुदा भी झुक जता है.दोस्ती वो एहसास है जो मिटती नही.दोस्ती पर्वत है वोह, जोह झुकता नही,इसकी कीमत क्या है पूछो हमसे,यह वो "अनमोल" मोटी है जो बिकता नही . . .सची है दोस्ती आजमा के देखो..करके यकीं मुझपर मेरे पास आके देखो,बदलता नही कभी सोना अपना रंग ,चाहे जितनी बार आग मे जला के देखो
किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रंगीली लगे
आखँ खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आखँ नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वो ही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
खुशी भी दोस्तो से है,गम भी दोस्तो से है,तकरार भी दोस्तो से है,प्यार भी दोस्तो से है,रुठना भी दोस्तो से है,मनाना भी दोस्तो से है,बात भी दोस्तो से है,मिसाल भी दोस्तो से है,नशा भी दोस्तो से है,शाम भी दोस्तो से है,जिन्दगी की शुरुआत भी दोस्तो से है,जिन्दगी मे मुलाकात भी दोस्तो से है,मौहब्बत भी दोस्तो से है,इनायत भी दोस्तो से है,काम भी दोस्तो से है,नाम भी दोस्तो से है,ख्याल भी दोस्तो से है,अरमान भी दोस्तो से है,ख्वाब भी दोस्तो से है,माहौल भी दोस्तो से है,यादे भी दोस्तो से है,मुलाकाते भी दोस्तो से है,सपने भी दोस्तो से है,अपने भी दोस्तो से है,या यूं कहो यारो,अपनी तो दुनिया ही दोस्तो से
ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए!...........
मेरे करीब तो आओ के बहुत उदास हूँ मैं,बस आज टूट कर चाहो के बहुत उदास हूँ मैं,
किसी भी झूठे दिल से दिल को बहलाओ,कोई कहानी सुनाओ के बहुत उदास हूँ मैं,
अँधेरी रात है कुछ भी नज़र नहीं आता,सितारे तोड़ कर लाओ के बहुत उदास हूँ मैं,
सुना है तेरे नगर मैं ख़ुशी भी मिलती है,मुझे यकीन दिलाओ के बहुत उदास हूँ मैं,
ये शाम यूँ ही गुज़र जायेगी दबे पाऊँ,दोस्ती का गीत सुनाओ के बहुत उदास हूँ मैं,
क्या लिखूँकुछ जीत लिखू या हार लिखूँया दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰मै खिलता सुरज आज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सान्स लिखूँवो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँमै तुमको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँमै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँन्खो की मै रात लिखूँमीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँबचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँसागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँवो पहली -पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँसावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की मै बरसात लिखूँगीता का अॅजुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰मै ऎक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰या मजहब की आन्खे चार लिखूँ॰॰॰कुछ जीत लिखू या हार लिखूँया दिल का सारा प्यार लिखूँ
न्यूजरूममजमा लगता है हर रोज़,सवेरे से,खबरों की मज़ार परऔर टूट पड़ते हैं गिद्दों के माफिकहम...हर लाश परऔर कभी...ठंडी सुबह...उदास चेहरे,कुहरे में कांपते होंठ-हाथ-पांव,और दो मिनट की फुर्सत...काटने दौड़ती है आजकलअब शरीर गवाही नहीं देता सुस्ती की...न दिन में और न रात में...जरूरी नहीं रहे दोस्त...दुश्मन...अपने...बहुत अपनेज्यादा खास हो गयी हैफूटी आंख न सुहाने वालीटेलीफोन की वो घंटी...जो नींद लगने से पहले उठाती है...और खुद को दो चार गालियां देकर...फिर चल पड़ता हूं...चीड़ फाड़ करने...न्यूजरुम में...न्यूजरूममजमा लगता है हर रोज़,सवेरे से,खबरों की मज़ार परऔर टूट पड़ते हैं गिद्दों के माफिकहम...हर लाश परऔर कभी...ठंडी सुबह...उदास चेहरे,कुहरे में कांपते होंठ-हाथ-पांव,और दो मिनट की फुर्सत...काटने दौड़ती है आजकलअब शरीर गवाही नहीं देता सुस्ती की...न दिन में और न रात में...जरूरी नहीं रहे दोस्त...दुश्मन...अपने...बहुत अपनेज्यादा खास हो गयी हैफूटी आंख न सुहाने वालीटेलीफोन की वो घंटी...जो नींद लगने से पहले उठाती है...और खुद को दो चार गालि
आजकल लोग कुछ इस तरह से परेशान नजर आ रहे , क्योकि आज के राजनेता उन लोगो की खामोशियों का काफी ग़लत फ़ायदा उठा रहे , आज की राजनीति इतनी बिगड़ चुकी है । कि उसे सभलना बहुत मुश्किल है। आज की राजनीति को सुधारना एक बड़ी चुनोती है। क्योकि इस राजनीति के राजनेता आम जनता को खुले आम लूट रहा है और इस से बच पाना बहुत मुश्किल है । आज कल छोटे से छोटा सता धरी नेता आम जनता पर अपना राज जमाना चाहते है। वे हर समय कोई न कोई मुद्दा बना कर जनता को दो भागो में बाटना चाहते है , ये राजनीति और उनके राजनेता इस भोली भाली जनता को और इस देश को बेच खायेगे। क्यों की आज कल इतना भ्रस्ताचार बढ गया है।