शीशे का दी ,आये थे लेकर पत्थरों के शहर मैं गैरों से बचाते रहे ,टूटा अपनों की ठोकर मैं ...............मुद्दतों से प्याशे थे क्या बताये अब अपना हाल फर्क न कर सके यारों हम "आव और जहर" मैं ..............उसने साहिल पर ही डुबोया मेरा आके तो सफीना जिसके हवाले खुद ही किया था हमने तूफां की लहर मैं गम नहीं रुसवाई का हमको इस भरी महफ़िल मैं अब तो उसने ही गिराया नजर से जिसको बसाया हमने नजर मैं .........उम्र भर तुम याद हमको अब तो आया करोगे जरूर ताड्पेगे हम जख्मों से जब जो दिए तुमने जिगर
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- चव्हाण की कुर्सी पर कौन ? (1)
- नाबालिग से है बलात्कार का आरोप (1)
- नितिन गडकरी का बयान (1)
- निह्त्थों पर चलाई गोली (1)
- नीतीश की ताजपोशी में अश्लीलता (1)
- बाबा से करेगी शादी और हनीमून चांद पर (1)
- बिना शादी के लौटी बारात (1)
- माया तेरी अजब कहानी (1)
- राम राम सत्य है मूर्दा बड़ा चुस्त है. (1)
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About Me
- rachit kathil
- मै एक छोटे परिवार से हूं और एक सफल पत्रकार बनकर लोगों के कष्टों को सबके सामने लाना है....
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