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Tuesday, March 31, 2009

दोस्तो से

Posted by rachit kathil

खुशी भी दोस्तो से है,गम भी दोस्तो से है,तकरार भी दोस्तो से है,प्यार भी दोस्तो से है,रुठना भी दोस्तो से है,मनाना भी दोस्तो से है,बात भी दोस्तो से है,मिसाल भी दोस्तो से है,नशा भी दोस्तो से है,शाम भी दोस्तो से है,जिन्दगी की शुरुआत भी दोस्तो से है,जिन्दगी मे मुलाकात भी दोस्तो से है,मौहब्बत भी दोस्तो से है,इनायत भी दोस्तो से है,काम भी दोस्तो से है,नाम भी दोस्तो से है,ख्याल भी दोस्तो से है,अरमान भी दोस्तो से है,ख्वाब भी दोस्तो से है,माहौल भी दोस्तो से है,यादे भी दोस्तो से है,मुलाकाते भी दोस्तो से है,सपने भी दोस्तो से है,अपने भी दोस्तो से है,या यूं कहो यारो,अपनी तो दुनिया ही दोस्तो से

दोस्त

Posted by rachit kathil

ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए!...........

उदास हूँ मैं

Posted by rachit kathil

मेरे करीब तो आओ के बहुत उदास हूँ मैं,बस आज टूट कर चाहो के बहुत उदास हूँ मैं,
किसी भी झूठे दिल से दिल को बहलाओ,कोई कहानी सुनाओ के बहुत उदास हूँ मैं,
अँधेरी रात है कुछ भी नज़र नहीं आता,सितारे तोड़ कर लाओ के बहुत उदास हूँ मैं,
सुना है तेरे नगर मैं ख़ुशी भी मिलती है,मुझे यकीन दिलाओ के बहुत उदास हूँ मैं,
ये शाम यूँ ही गुज़र जायेगी दबे पाऊँ,दोस्ती का गीत सुनाओ के बहुत उदास हूँ मैं,

लिखूँकुछ

Posted by rachit kathil

क्या लिखूँकुछ जीत लिखू या हार लिखूँया दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰मै खिलता सुरज आज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सान्स लिखूँवो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँमै तुमको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँमै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँन्खो की मै रात लिखूँमीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँबचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँसागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँवो पहली -पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँसावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की मै बरसात लिखूँगीता का अॅजुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰मै ऎक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰या मजहब की आन्खे चार लिखूँ॰॰॰कुछ जीत लिखू या हार लिखूँया दिल का सारा प्यार लिखूँ

न्यूजरूममजमा

Posted by rachit kathil

न्यूजरूममजमा लगता है हर रोज़,सवेरे से,खबरों की मज़ार परऔर टूट पड़ते हैं गिद्दों के माफिकहम...हर लाश परऔर कभी...ठंडी सुबह...उदास चेहरे,कुहरे में कांपते होंठ-हाथ-पांव,और दो मिनट की फुर्सत...काटने दौड़ती है आजकलअब शरीर गवाही नहीं देता सुस्ती की...न दिन में और न रात में...जरूरी नहीं रहे दोस्त...दुश्मन...अपने...बहुत अपनेज्यादा खास हो गयी हैफूटी आंख न सुहाने वालीटेलीफोन की वो घंटी...जो नींद लगने से पहले उठाती है...और खुद को दो चार गालियां देकर...फिर चल पड़ता हूं...चीड़ फाड़ करने...न्यूजरुम में...न्यूजरूममजमा लगता है हर रोज़,सवेरे से,खबरों की मज़ार परऔर टूट पड़ते हैं गिद्दों के माफिकहम...हर लाश परऔर कभी...ठंडी सुबह...उदास चेहरे,कुहरे में कांपते होंठ-हाथ-पांव,और दो मिनट की फुर्सत...काटने दौड़ती है आजकलअब शरीर गवाही नहीं देता सुस्ती की...न दिन में और न रात में...जरूरी नहीं रहे दोस्त...दुश्मन...अपने...बहुत अपनेज्यादा खास हो गयी हैफूटी आंख न सुहाने वालीटेलीफोन की वो घंटी...जो नींद लगने से पहले उठाती है...और खुद को दो चार गालि